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मोहब्बत हो गयी उनसे

मोहब्बत हो गयी उनसे मोहब्बत हो गयी उनसे और वो अनजान बैठे हैं भीगना था बारिश में संग वो छतरी तान बैठे हैं करते तुम क्यों इनकार मेरे प्रेम निवेदन को वैसे अपने भी दुनिया में कदरदान बैठे हैं इस जहाँ में तुम ही हो जिस पे दिल ये आया है वरना कम नही जो देकर हम पर जान बैठे है अरे हाँ कम नही थे सुंदर इस सुंदर नगरी में पर देखी सादगी तेरी तो दिल कुर्बान बैठे हैं ये दुनिया बड़ी जालिम प्रेम करना नहीं आसान फिर भी प्यार में देकर के इम्तेहान बैठे है फिदा ये दिल हुआ तुम पर एक मुस्कान के खातिर तेरी मुस्कान को ही प्यार अपना मान बैठे है पंकज कुमार झा चित्तौड़गढ़ अपनी टिपण्णी अवश्य करें।

निज मुट्ठी में रोशनी लाया

निज मुट्ठी में रोशनी लाया चारों तरफ था तिमिर चल रही थी आँधियां शांय शांय का शोर था वो ले रही थी सिसकियां रास्ते सब वीरान थे बन्द थी वो खिड़कियां राज था शैतान का रो रही थी बच्चियां जानवर जो बेजान थे गिद्ध खाये हड्डियां चमन सारे शमशान थे जल रही थी लकड़ियां त्राहि त्राहि कर रहे आम सारे लोग जब ले के सूरज हाथ में आप का उदय हुआ कष्ट सारे अब मिटेंगे मन में ये विश्वास था अब सारे दिन फिरेंगे सब के मन मे आस था ले के झाड़ू हाथ में साफ सब कचरा किया लग रहा था आप में भविष्य का उदय हुआ चूहे सारे कल तलक जो खा रहे गोदाम थे आज पकड़े जाएंगे अब नही बच पाएंगे टोपियों के जाल में आस सब बंधी रही चूहों से संधि हुई जनता फिर बंदी हुई उठ गया भरोसा सब कौन कष्ट मिटाएगा फिर से कोई सूरज ले के क्या मेरे घर आएगा मन बहुत क्लान्त था फिर भी बिल्कुल शांत था क्या करूँ क्या ना करूँ किस पर फिर विश्वास करूँ तभी पास में आकर के जुगनू धीरे से ये बोला खुद की आग जलाकर ही कर सकता है तूँ उजियाला जुगनू में मित्र नज़र आया अब समाधान समझ आया मेहनत की भट्टी में तपकर निज मुट्ठी में रो...

जय श्री राम जय श्री राम

जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जब तक लक्ष्य ना मिल जाये तब तक ना हो कोई विराम न अर्ध विराम न पूर्ण विराम बस जय श्री राम जय श्री राम जो सत्य मार्ग पर चलते हैं मिथ्या उनके लिए हराम विजय उन्ही की निश्चित है फिर जय श्री राम जय श्री राम मार्ग में कांटे कितने भी हो कंकड़ पत्थर जितने भी हो फल मिल जाये उनको तमाम फिर जय श्री राम जय श्री राम जब साथ में रघुवर रहते हैं बदल जाते हैं सारे परिणाम हार हारती है उनसे जो बोले फिर जय श्री राम जय श्री राम जो अथक परिश्रम करते है वो लक्ष्य को पाकर रहते है नही करते तब तक वो विश्राम फिर जय श्री राम जय श्री राम लघुपथ चुनने के चक्कर में जो अनीति को शस्त्र बनाते है हो जाता उनका राम राम फिर जय श्री राम जय श्री राम रावण से जब भी युद्ध करो घर के विभीषण साथ धरो विजय तुम्हारा वरण करेगी फिर जय श्री राम जय श्री राम पंकज कुमार झा चित्तौड़गढ़ कविता पर अपनी टिप्पणी अवश्य करें।

फोकट का जब मिलेगा मक्खन

फोकट का जब मिलेगा मक्खन व्यंग कविता फोकट का जब मिलेगा मक्खन क्यों नही फिर कोई खायेगा हाथ से घिसकर कोई चंदन लाये क्यों नही सिर पर लगाएगा मानव मन का एक ही मंतर फ्री का हलवा पेट के अंदर जो समझेगा इस मंतर को वही राज कर पायेगा फोकट का जब मिलेगा मक्खन क्यों नही फिर कोई खायेगा आदर्शों से पेट ना भरता भूखा कैसे मर जायेगा बेचने वाला दुनिया बेचे उसके बाप का क्या जाएगा फोकट का जब मिलेगा मक्खन क्यों नही फिर कोई खायेगा मेहनत मजदूरी वो करता है जिसमें थोड़ी भी अकल नही होशियार तो चुप चुप बैठे गुपचुप रसगुल्ले खायेगा फोकट का जब मिलेगा मक्खन क्यों नही फिर कोई खायेगा मेहनत का फल मीठा होता बहुत पुरानी बात रही चौकीदार से कर लो सेटिंग जेब में माल तो आएगा फोकट का जब मिलेगा मक्खन क्यों नही फिर कोई खायेगा जब कान्हा भी मक्खन खाते कौनसी मुद्रा दे के जाते वो कान्हा का छोटा सेवक क्यों नहीं मुफ्त का खायेगा फोकट का जब मिलेगा मक्खन क्यों नही फिर कोई खायेगा बांट कूट कर खाएंगे घर राजा के जाएंगे मूल मंत्र ये राज पाट का जिसके समझ आ जायेगा राज करेगा इस दुनिया पर उसका राज ना ज...

फिर से ऐसा राष्ट्र बनाएं

फिर से ऐसा राष्ट्र बनाएं कोई नृप होए हमे का हानि खा गई यही तो बात पुरानी इसी बात से धरी गुलामी सात सदी यह बात पुरानी अपि स्वर्ण मयी लंका न में लक्ष्मण रोचते कभी नही हमला बोला इसी बात को सोचते जब था अपना अशोक महान दुनिया करती उनको सलाम फिर भी ताक़त के बल पर न बनाया परदेश को गुलाम शांति का वो पाठ पढ़ाने निज बच्चों को भी लगाया ले के दुनिया में एक झंडा बुद्धि से सब को बुद्ध बनाया चक्रवर्ती सम्राटों ने जब अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ा भू मंडल ने नमन किया फिर मार्ग में बना नही कोई रोड़ा एक सिकंदर दुनिया जाने दुनिया लगी थी बाप बुलाने लेकिन जब वो भारत आया चंद्रगुप्त को बाप बनाया इतिहास के स्वर्णिम पन्ने अपने बच्चे जो ना पढ़ेंगे सुनकर गुलामी की गाथाएं आगे कभी नही वो बढ़ेंगे आओ हम सब याद दिलाएं बच्चों को अपने सिखलाएं इस जग के तुम गुरु होते थे फिर से ऐसा राष्ट्र बनाएं पंकज कुमार झा चित्तौड़गढ़

राष्ट्रवाद पर फिर से देखो पेटवाद पड़ा भारी है

राष्ट्रवाद पर फिर से देखो पेटवाद पड़ा भारी है राष्ट्रवाद पर फिर से देखो पेटवाद पड़ा भारी है एक एक राष्ट्रवादी पर  नो नो पेटवादी भारी है हस्तिनापुर में अब भूखों की फ़ौज़ बड़ी ही भारी है राज सिंहासन बैठा रोये मुझ पर लालची भारी है मां की अस्मिता लेकर के जो राशन कार्ड बनाते थे उन्हीं कंधों पर आज है आयी राशन बांटने की बारी है मेरे सैनिक समरभूमि में जब दुश्मन मारा करते थे मांगे सबूत जो उनसे भी उसी राज की तैयारी है भारत तेरे टुकड़े होंगे दिल्ली में फिर हावी होगा तीन सौ सत्तर हटाने वाले हाथों में लाचारी है घर घर से अफ़ज़ल निकलेगा जिनका प्रिय वो नारा था शाहीन बाग़ में आकर बैठे विधानसभा की तैयारी है मुफ्त का माल सब में जाता तूँ भी खाता मैं भी खाता कौनसे अपने बाप का जाता अब इसी सोच की बारी है पंकज कुमार झा चित्तौड़गढ़

आज कल ना जाने क्यों देखो हम कंजूस हो गए

आज कल ना जाने क्यों देखो हम कंजूस हो गए आज कल ना जाने क्यों देखो हम कंजूस हो गए अब हम प्यार करने में भी मक्खी चूस हो गए पहले आती जब बसन्त हम मदमस्त हो जाते आजकल 14 फरवरी में सारे व्यस्त हो गए कहां वो दो दो महीनों तक फागुन का शोर होता था कहाँ अब 24 घंटो में ही हम तो बोर हो गए खेलते होली सब के संग रंगों का जोर होता था सारी दुनिया थी अपनी ही अब सब गैर हो गए होता झगड़ा भी किसी से होली पर गले लगाते हम अब फिर ना जाने क्यों अपनो से ही दूर हो गए जब हम पढ़ते थे विज्ञान तो आइंस्टाइन आता था अब ये प्यार करने वाले वेलेंटाइन हो गए पंकज कुमार झा चित्तौड़गढ़