आज कल ना जाने क्यों देखो हम कंजूस हो गए
आज कल ना जाने क्यों देखो हम कंजूस हो गए
आज कल ना जाने क्यों
देखो हम कंजूस हो गए
अब हम प्यार करने में
भी मक्खी चूस हो गए
पहले आती जब बसन्त
हम मदमस्त हो जाते
आजकल 14 फरवरी
में सारे व्यस्त हो गए
कहां वो दो दो महीनों तक
फागुन का शोर होता था
कहाँ अब 24 घंटो में
ही हम तो बोर हो गए
खेलते होली सब के संग
रंगों का जोर होता था
सारी दुनिया थी अपनी ही
अब सब गैर हो गए
होता झगड़ा भी किसी से
होली पर गले लगाते हम
अब फिर ना जाने क्यों
अपनो से ही दूर हो गए
जब हम पढ़ते थे विज्ञान
तो आइंस्टाइन आता था
अब ये प्यार करने वाले
वेलेंटाइन हो गए
पंकज कुमार झा
चित्तौड़गढ़
आज कल ना जाने क्यों
देखो हम कंजूस हो गए
अब हम प्यार करने में
भी मक्खी चूस हो गए
पहले आती जब बसन्त
हम मदमस्त हो जाते
आजकल 14 फरवरी
में सारे व्यस्त हो गए
कहां वो दो दो महीनों तक
फागुन का शोर होता था
कहाँ अब 24 घंटो में
ही हम तो बोर हो गए
खेलते होली सब के संग
रंगों का जोर होता था
सारी दुनिया थी अपनी ही
अब सब गैर हो गए
होता झगड़ा भी किसी से
होली पर गले लगाते हम
अब फिर ना जाने क्यों
अपनो से ही दूर हो गए
जब हम पढ़ते थे विज्ञान
तो आइंस्टाइन आता था
अब ये प्यार करने वाले
वेलेंटाइन हो गए
पंकज कुमार झा
चित्तौड़गढ़
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