फोकट का जब मिलेगा मक्खन

फोकट का जब मिलेगा मक्खन

व्यंग कविता

फोकट का जब मिलेगा मक्खन
क्यों नही फिर कोई खायेगा
हाथ से घिसकर कोई चंदन लाये
क्यों नही सिर पर लगाएगा

मानव मन का एक ही मंतर
फ्री का हलवा पेट के अंदर
जो समझेगा इस मंतर को
वही राज कर पायेगा
फोकट का जब मिलेगा मक्खन
क्यों नही फिर कोई खायेगा

आदर्शों से पेट ना भरता
भूखा कैसे मर जायेगा
बेचने वाला दुनिया बेचे
उसके बाप का क्या जाएगा
फोकट का जब मिलेगा मक्खन
क्यों नही फिर कोई खायेगा

मेहनत मजदूरी वो करता है
जिसमें थोड़ी भी अकल नही
होशियार तो चुप चुप बैठे
गुपचुप रसगुल्ले खायेगा
फोकट का जब मिलेगा मक्खन
क्यों नही फिर कोई खायेगा

मेहनत का फल मीठा होता
बहुत पुरानी बात रही
चौकीदार से कर लो सेटिंग
जेब में माल तो आएगा
फोकट का जब मिलेगा मक्खन
क्यों नही फिर कोई खायेगा

जब कान्हा भी मक्खन खाते
कौनसी मुद्रा दे के जाते
वो कान्हा का छोटा सेवक
क्यों नहीं मुफ्त का खायेगा
फोकट का जब मिलेगा मक्खन
क्यों नही फिर कोई खायेगा

बांट कूट कर खाएंगे
घर राजा के जाएंगे
मूल मंत्र ये राज पाट का
जिसके समझ आ जायेगा
राज करेगा इस दुनिया पर
उसका राज ना जाएगा
फोकट का जब मिलेगा मक्खन
क्यों नही फिर कोई खायेगा

पंकज कुमार झा
चित्तौड़गढ़

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