टूटते परिवार
टूटते परिवार
कितने पास रहते तुम
बढ़ गयी है दूरियाँ
क्या हुआ है इस कदर
तेरे मेरे दरमियाँ
आज कल जुदा जुदा
रहते तुम खफा खफा
क्या हुआ जो इस तरह
हो गए तुम बेवफा
कल तलक तो एक थे
जैसे गमले के हो फूल
फिर ऐसा क्या घटा
बन गए आंखों के शूल
मिट्टी अपनी एक थी
माली अपने एक थे
एक ही थे कुल के बीज
बदले फिर क्यों रंग थे
कुछ बड़े तुम हुए
कुछ छोटे हम रहे
खुशबू तेरी ना रही
रंग मेरे ना रहे
जिनको लोग चाहते
अब चलन में ना रहे
कीमतें तेरी गिरी
काम के ना हम रहे
तन से हम आगे बढ़े
मन हमारे नेक हो
आजा तेरे रंग में
खुशबू मेरी एक हो
पंकज कुमार झा
चित्तौड़गढ़
मोबाईल 9314121539
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