राष्ट्रवाद की इस आंधी में ध्वस्त हुए सारे पत्थर

श्री राम मंदिर निर्माण की चल रही परिस्थिति पर एक कविता प्रस्तुत है।

राष्ट्रवाद की इस आंधी में धवास्त हुए सारे पत्थर

राष्ट्रवाद की इस आंधी में
ध्वस्त हुए सारे पत्थर
कोना कोना देवालय है
कंकड़ कंकड़ है शंकर

बर्बर बाबर बना के बैठा
जिसको मस्जिद ताक़त से
ले उखाड़ के आज है फेंका
जनता ने अपनी ताक़त से

गिरा के मंदिर आज बना जो
वो मस्जिद फिर से ध्वस्त हुआ
राम नाम की ओढ़ चदरिया
मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ

राम कार्य में बने जो बाधा
उनका हाल बुरा होगा
हनुमन उसको ना छोड़ेंगे
चाहे वो जितना बड़ा होगा

मर्यादा पुरुषोत्तम थे वो
इसीलिए थे इतने शांत
परशुराम के अंश जो होते
कर देते फरसे से शांत

छेड़ ना उस ताक़त को मानव
जिसने तुझे बनाया है
नेत्र तीसरा जब भी खुला है
उसने प्रलय मचाया है

पंकज कुमार झा
चित्तौड़गढ़
मोबाईल 9314121539

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