आईना


आईना (दर्पण)


जैसा हो वैसा बताता
सच बताता आईना
चेहरे पे थे दाग मेरे
मैं साफ करता आईना

हर दीवाली साफ करते
घर दर ओ दीवार को
जाने दिल कब साफ होंगे
वो साफ करते आईना

एक तूँ ही इस जहां में
प्यार जिससे सब करे
कहने को महबूब से इश्क़
वो देखते है आईना

खुद से प्यारा ना जहां में
और कोई इस कदर
ग़र खुदा भी पास आता
देखता वो आईना

कर के टुकड़े लाख देखे
पर मानता नही आईना
चेहरे पर चेहरे छुपाये
पर सच दिखाता आईना

काँच का टुकड़ा था जब मैं
सब को था चुभता रहा
सब का फिर प्यारा हुआ
जब बन गया मैं आईना।

सच्चा ग़र तूँ दोस्त मेरा
मत दे तूँ झूठा सुकूँ
मतलबी इस दुनिया में तूँ
बन जा मेरा आईना


पंकज कुमार झा
चित्तौड़गढ़
मोबाईल 9314121539

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