चिंतन
राष्ट्रीय परिदृश्य पर भारतीय जनता पार्टी का राज्यों में से घटता हुआ प्रभाव पार्टी के लिए जरूर एक सोचने का विषय होना चाहिए।जैसा कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का चेहरा नरेंद्र भाई मोदी और अमित भाई शाह जैसे दिग्गज जिन्होंने जनता के बीच में अपनी एक छवि बनाई है।पार्टी के विचारों को लेकर के उसका समर्थन लगातार बढ़ रहा है ।अर्थात 2014 के लोकसभा चुनाव में संपूर्ण देश में भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर जितनी सीटें जीती 2019 में वह दम कामयाबी के साथ रिपीट हुआ। लेकिन जहां तक राज्यों की बात करें इन्हीं 6 वर्षों में भारतीय जनता पार्टी के हाथों से कई राज्य खिसकते चले गए जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और अब झारखंड। यह सब के लिए सोचने का विषय है कि आखिर पार्टी का इतना लोकप्रिय चेहरा मोदी जी के रूप में पार्टी के साथ है फिर भी पार्टी राज्यों में क्यों पिछड़ रही है वही लोग जो 50% वोटों के साथ मोदी जी को सर्वाधिक सीटें देते हैं वही लोग राज्य चुनाव में भाजपा को पीछे छोड़ देते हैं। अर्थ साफ है केंद्र सरकार के कामों से लोग संतुष्ट हैं। केंद्र सरकार अपनी समस्त योजनाओं का प्रचार प्रसार सकारात्मक रूप से अपने जनता के बीच में पहुंचाने में कामयाब हो रही है ।लेकिन राज्य स्तर पर इस विषय में पार्टी पीछे है । कई कारण हो सकते हैं , उन कारणों में एक कारण जो महसूस होता है वह यह कि मोदी जी में,अमित शाह में जो नेतृत्व की क्षमता, जो राष्ट्रवादी विचार की क्षमता लोगों को महसूस होती है वह क्षमता इनके राज्य के प्रतिनिधि नेतृत्व में जनता को महसूस नहीं होती है ।जब हम इसकी बारीकी में जाते हैं तो एकमात्र चेहरा जो राज्य स्तर पर भी अपनी छवि को बहुत ही बेहतर रूप से बनाने में कामयाब रहे हैं वह है उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी । अर्थात जनता भारतीय जनता पार्टी में योगी और मोदी जैसे चेहरे को ही नेतृत्व के रूप में देखना चाहती है और यह पार्टी को समझना होगा ।पार्टी के जो मुखिया है उन्हें भी उतना लोकप्रिय बनाना होगा । उनमें लोगों को अपने राज्य का मोदी या अपने राज्य का योगी नजर आए । चाहे हिंदुत्व की छवि का मामला हो , चाहे पार्टी के आदर्शों का मामला हो वह राज्य का नेतृत्वकर्ता उस छवि पर ठीक रूप से रहता है तो जनता उस विचार के साथ आगे बढ़ती है ।और ऐसे चेहरे जो पार्टी के विचारों के अनुरूप नहीं है उनके साथ जब जब भी नेतृत्व आगे बढ़ा है नेतृत्व को हार का सामना करना पड़ा है । पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने तीन प्रयोग तीन राज्यों में किए । पहला प्रयोग झारखंड में आदिवासी बाहुल्य होने के बावजूद पार्टी की बहुमत की सीटें आने पर गैर आदिवासी नेता रघुवर दास को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया । वहीं हरियाणा में जाट बाहुल्य होने के बावजूद गैर जाट नेता के रूप में हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में हरियाणा को दिया। महाराष्ट्र में मराठी बाहुल्य होने के बावजूद गैर मराठी नेता देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का नेतृत्व पार्टी ने बहुमत मिलने पर दिया। इन तीनों ही नेतृत्व को मौका था यह अपने आप में योगी और मोदी के रूप में जो जनता की आकांक्षा है वह अपने राज्य में देते लेकिन इस छवि को बनाने में वह नाकामयाब रहे । परिणाम सब ने देखा हरियाणा में किसी तरह सरकार बच गई , लेकिन महाराष्ट्र में गठबंधन को बहुमत होने के बावजूद पार्टी को सरकार से हाथ धोना पड़ा। और आज झारखंड में भी भाजपा को सरकार से बाहर होना पड़ रहा है । छत्तीसगढ़ में रमन सिंह जी की सरकार गई ।मध्यप्रदेश में मामा शिवराज जी की सरकार गई ।राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार गई । इन तीनों राज्यों में मध्यप्रदेश में मामा ने जरूर कांग्रेस को अच्छी टक्कर दी और 15 साल के सरकार की खिलाफ बने वोट को साधने में बहुत हद तक कामयाब रहे लेकिन फिर भी कुछ ही अंतर से सरकार से बाहर जाना पड़ा। शेष दो में छत्तीसगढ़ बुरी तरह से भारतीय जनता पार्टी हारी और राजस्थान में वसुंधरा जी की नकारात्मकता पार्टी पर भारी पड़ी ।वसुंधरा जी की ईगो पार्टी पर हावी रहा ।उसका परिणाम केवल वसुंधरा जी को नहीं बल्कि पूरी पार्टी को भुगतना पड़ा । वसुंधरा जी को मुख्यमंत्री से हटाने की मांग सरकार के शुरुआती 2 सालों में ही शुरुआत हो गई थी और यदि उसी समय पार्टी चुनाव से 2 वर्ष पूर्व भी नया कैंडिडेट नया प्रतिनिधि जो जनता की मांगों के अनुरूप हो और जिसमें मोदी शाह या योगी की छवि नजर आए उसको आगे करती तो शायद राजस्थान की भी सरकार बच जाती।
चिंतक
पंकज कुमार झा
राष्ट्रीय परिदृश्य पर भारतीय जनता पार्टी का राज्यों में से घटता हुआ प्रभाव पार्टी के लिए जरूर एक सोचने का विषय होना चाहिए।जैसा कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का चेहरा नरेंद्र भाई मोदी और अमित भाई शाह जैसे दिग्गज जिन्होंने जनता के बीच में अपनी एक छवि बनाई है।पार्टी के विचारों को लेकर के उसका समर्थन लगातार बढ़ रहा है ।अर्थात 2014 के लोकसभा चुनाव में संपूर्ण देश में भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर जितनी सीटें जीती 2019 में वह दम कामयाबी के साथ रिपीट हुआ। लेकिन जहां तक राज्यों की बात करें इन्हीं 6 वर्षों में भारतीय जनता पार्टी के हाथों से कई राज्य खिसकते चले गए जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और अब झारखंड। यह सब के लिए सोचने का विषय है कि आखिर पार्टी का इतना लोकप्रिय चेहरा मोदी जी के रूप में पार्टी के साथ है फिर भी पार्टी राज्यों में क्यों पिछड़ रही है वही लोग जो 50% वोटों के साथ मोदी जी को सर्वाधिक सीटें देते हैं वही लोग राज्य चुनाव में भाजपा को पीछे छोड़ देते हैं। अर्थ साफ है केंद्र सरकार के कामों से लोग संतुष्ट हैं। केंद्र सरकार अपनी समस्त योजनाओं का प्रचार प्रसार सकारात्मक रूप से अपने जनता के बीच में पहुंचाने में कामयाब हो रही है ।लेकिन राज्य स्तर पर इस विषय में पार्टी पीछे है । कई कारण हो सकते हैं , उन कारणों में एक कारण जो महसूस होता है वह यह कि मोदी जी में,अमित शाह में जो नेतृत्व की क्षमता, जो राष्ट्रवादी विचार की क्षमता लोगों को महसूस होती है वह क्षमता इनके राज्य के प्रतिनिधि नेतृत्व में जनता को महसूस नहीं होती है ।जब हम इसकी बारीकी में जाते हैं तो एकमात्र चेहरा जो राज्य स्तर पर भी अपनी छवि को बहुत ही बेहतर रूप से बनाने में कामयाब रहे हैं वह है उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी । अर्थात जनता भारतीय जनता पार्टी में योगी और मोदी जैसे चेहरे को ही नेतृत्व के रूप में देखना चाहती है और यह पार्टी को समझना होगा ।पार्टी के जो मुखिया है उन्हें भी उतना लोकप्रिय बनाना होगा । उनमें लोगों को अपने राज्य का मोदी या अपने राज्य का योगी नजर आए । चाहे हिंदुत्व की छवि का मामला हो , चाहे पार्टी के आदर्शों का मामला हो वह राज्य का नेतृत्वकर्ता उस छवि पर ठीक रूप से रहता है तो जनता उस विचार के साथ आगे बढ़ती है ।और ऐसे चेहरे जो पार्टी के विचारों के अनुरूप नहीं है उनके साथ जब जब भी नेतृत्व आगे बढ़ा है नेतृत्व को हार का सामना करना पड़ा है । पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने तीन प्रयोग तीन राज्यों में किए । पहला प्रयोग झारखंड में आदिवासी बाहुल्य होने के बावजूद पार्टी की बहुमत की सीटें आने पर गैर आदिवासी नेता रघुवर दास को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया । वहीं हरियाणा में जाट बाहुल्य होने के बावजूद गैर जाट नेता के रूप में हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में हरियाणा को दिया। महाराष्ट्र में मराठी बाहुल्य होने के बावजूद गैर मराठी नेता देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का नेतृत्व पार्टी ने बहुमत मिलने पर दिया। इन तीनों ही नेतृत्व को मौका था यह अपने आप में योगी और मोदी के रूप में जो जनता की आकांक्षा है वह अपने राज्य में देते लेकिन इस छवि को बनाने में वह नाकामयाब रहे । परिणाम सब ने देखा हरियाणा में किसी तरह सरकार बच गई , लेकिन महाराष्ट्र में गठबंधन को बहुमत होने के बावजूद पार्टी को सरकार से हाथ धोना पड़ा। और आज झारखंड में भी भाजपा को सरकार से बाहर होना पड़ रहा है । छत्तीसगढ़ में रमन सिंह जी की सरकार गई ।मध्यप्रदेश में मामा शिवराज जी की सरकार गई ।राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार गई । इन तीनों राज्यों में मध्यप्रदेश में मामा ने जरूर कांग्रेस को अच्छी टक्कर दी और 15 साल के सरकार की खिलाफ बने वोट को साधने में बहुत हद तक कामयाब रहे लेकिन फिर भी कुछ ही अंतर से सरकार से बाहर जाना पड़ा। शेष दो में छत्तीसगढ़ बुरी तरह से भारतीय जनता पार्टी हारी और राजस्थान में वसुंधरा जी की नकारात्मकता पार्टी पर भारी पड़ी ।वसुंधरा जी की ईगो पार्टी पर हावी रहा ।उसका परिणाम केवल वसुंधरा जी को नहीं बल्कि पूरी पार्टी को भुगतना पड़ा । वसुंधरा जी को मुख्यमंत्री से हटाने की मांग सरकार के शुरुआती 2 सालों में ही शुरुआत हो गई थी और यदि उसी समय पार्टी चुनाव से 2 वर्ष पूर्व भी नया कैंडिडेट नया प्रतिनिधि जो जनता की मांगों के अनुरूप हो और जिसमें मोदी शाह या योगी की छवि नजर आए उसको आगे करती तो शायद राजस्थान की भी सरकार बच जाती।
चिंतक
पंकज कुमार झा
Bahut hi behtarin soch h.
ReplyDeleteधन्यवाद
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