फिर से मुझे समंदर कर दे


फिर से मुझे समंदर कर दे


मेरे मन में तेरे मन का
आज तूँ मिलन कर दे
बनकर नदियाँ तूँ आज
फिर से मुझे समंदर कर दे

हार कर दुनिया मैं सारी
बैठूं तेरे गेशुओं में
जीत लूँ मैं तुझको फिर से
आज मुझे सिकन्दर कर दे

बन के भोला पास तेरे
मैं रहूँ और पूजा जाऊं
तूँ  हो मेरी शैलपुत्री
ऐसा तूँ वो मंदर कर दे

जान जाऊँ जग के सारे
छल कपट माया धरम को
मिल के मुझमें भारती सी
तूँ मुझे धुरंधर कर दे

छोड़ कर दुनिया चलूँ मैं
भक्ति तेरी बस प्रीत हो
रात दिन तुझको जपूँ मैं
ऐसा मुझे कलंदर कर दे

पंकज कुमार झा
चित्तौड़गढ़
मोबाईल 9314121539
कविता कैसी लगी टिप्पणी अवश्य करें।

Comments

  1. The journey of icon has started.. keep going.

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  2. Dev S Jha sir thank you.
    This is possible because of your precious inspiration.
    Your suggestions will always be a priceless pearl for me.

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